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दोहरे चरित्र वाला देश का तथाकथित प्रजातंत्र

दृश्य एक :
दिनांक : १७ दिसम्बर २००९.
स्थान : किंग क्रोस स्टेशन, इंग्लैंड.
समय :सुबह के दस बजकर पेंतीस मिनिट.
दस बजकर पैतालीस मिनिट पर इसी किंग्स क्रोस स्टेशन से चलकर नोरफ्लोक के किंग लिन स्टेशन तक जाने वाली रेल गाड़ी प्लेटफॉर्म नंबर ग्यारह पर खड़ी है. तभी इस गाडी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में इंग्लैंड की ८३ (तेरासी) वर्षीया महारानी एलिज़ाबेथ अपने एक सुरक्षाकर्मी के साथ पौंड £४४.४० का टिकट खरीद कर सफ़र करने के लिए बिना किसी तामझाम के, आम आदमी के साथ सफ़र करने के लिए चढ़ती है. महारानी जो अपने क्रिसमस या बड़े दिन की छुट्टी मनाने जा रही थी, उन्होंने एक आम व्यक्ति की तरह खिड़की के पास की सीट पर जगह ली और फिर वही से बैठ कर गाड़ी के चलने का इंतज़ार करने लगी. गाड़ी सही समय पर चली और समय पर ही अपने गंतव्य स्थान पर पहुंची. गाडी के गंतव्य स्थान पर पहुँचने के बाद महारानी अपनी सीट पर ही बैठी रही, उन्होंने सब लोगो के उतरने का इंतज़ार किया और उसके बाद वो उतर कर अपनी कार से सात मील दूर अपने महल पहुँच गई. महारानी और उनके परिवार वालो ने पहले भी कई बार ट्रेन ली है और बकिंघम पैलेस के प्रवक्ता के अनुसार रानी और उनका शाही परिवार साल में कई बार नियमित रेल सेवा का उपयोग आम आदमी की तरह करता है.

दृश्य दो :
स्थान : इंदिरा गाँधी हवाई अड्डा.
समय : सुबह के ११:३०.
मेरी घरेलु उड़ान एक घंटे की देर से चलने की उद्घोषणा हो रही है. तभी देखा करीब दस बारह बंद गेट की तरफ बड़े जा रहे थे. उनमे से कुछ हवाई अड्डे के कर्मचारी थे जिनके गले में टेग था. इन सबके बीच में एकदम नज़र पड़ते ही देख की आज़ाद भारत के सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रीमंडल में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग में मंत्री जी कुर्ते पायजामे में चल रहे है. साथ में एक दो शायद IAS अफसर रहे होंगे जो फाइल और एक छोटा बैग पकडे पकडे चल रहे थे. थोडा आगे बढ़ते ही एक आदमी ने इशारा किया और गेट पर खड़े सिपाही ने तत्काल गेट का दरवाजा खोल कर सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया. विमानतल पर उतरते ही एक SUV आ गई और किसी ने दरवाजा खोल दिया. नेताजी बात करते हुए एक कदम आगे ही बढे थे की वो समझ गया साहब दूसरी तरफ बैठना चाहेंगे और तत्काल दूसरा दरवाजा भी स्वत ही खुल गया. साहब ने आसन ग्रहण किया और एक व्यक्ति आगे बैठ गया. SUV विमान की तरफ बढ़ने लगी ही थी की तभी एक वेन आ गई और विमतल के कर्मचारी उस में सवार हो कर साहब को विमान में बैठने के लिए उस SUV के पीछे पीछे हो लिए.

दृश्य तीन :
दिल्ली जाने वाला विमान अब उड़ान भरने को तैयार है. यात्रियों से निवेदन की तुरंत सुरक्षा जांच करवा के विमान की और प्रस्थान करे. एक घंटे बाद भी विमान वही खड़ा है. पता चलता है की नेताजी बस आ ही रहे है. यानि विमान में सवार सौ पचास लोगो के समय की कोई कीमत नहीं है. अगर उन्हें आगे कोई फ्लाईट लेनी है और वो लेट हो रहे है तो बस प्रार्थना करे की आगे वाली फ्लाईट भी लेट हो जाए क्योंकि नेताजी का सवाल है. हाल ही में तो संसद ने नेता और उसके परिवार को मुफ्त यात्रा का प्रावधान भी कर दिया है, जैसे की हवाई जहाज न होकर उनके बाप का कोई ख़रीदा हुआ बंधुआ मजदूर है . फिर ऐसे में अगर एयर इंडिया ५५०० करोड़ के घाटे में चलती है तो क्या आश्चर्य है.

दृश्य चार :
गुडगाँव से दिल्ली में प्रवेश करने वाला टोल टैक्स. आधे घंटे की लाइन में गाड़ियाँ बम्पर से बम्पर लगा कर अटी पड़ी है. आम आदमी को पैसे दे कर प्रवेश करने में बीस से पच्चीस मिनिट का समय लग रहा है. लेकिन इस दौरान एक दर्जन लाल और नीली बत्ती वाली गाडिया साइरन देती हुई आती है और, शायद बिना पैसे दिए हुए (सरकारी गाड़ी होने की वजह से), आराम से निकल जाती है.

कभी कभी सोचता हूँ, कि क्या इंग्लैंड की तरह, हमारे देश के महामहिम या फिर टुच्चे छाप नेता अकेले या फिर अपने लाव-लश्कर के साथ कभी आम आदमी की तरह ट्रेन या हवाई यात्रा कर सकते है. यहाँ यह बतलाना जरुरी है की सोनिया गाँधी ने जब एक बार मवेशी या इकोनोमी क्लास में सफ़र किया था जब जहाज की तीन पंक्तिया सुरक्षा की दृष्टी से खाली रखी गई थी. फिर दिमाग में आता है की अगर इन लोगो को अगर आम आदमी के तरह सफ़र करना पड़े तो नेता बनने से क्या फायदा. हमारे देश में नेता होने का मतलब है, जनता से दूर होकर, सारे सरकारी संसाधन अपनी बपौती समझ कर उनका दुरूपयोग करना. ये नेता तो चुनावी सभा में भी हेलीकाप्टर से जाते है और फिर भाषण की ऐसी बाढ़ ले आते है की बस जीतते ही मक्खन की तरह सड़क बनवा देंगे. मुगालते में जनता वोट दे देती है. मक्खन ये खा जाते है और सड़के इनके विभाग के सरकारी अफसर. नतीजा वोही ढ़ाक के तीन पांत.

क्या इंग्लैंड की रानी को सुरक्षा की फ़िक्र नहीं है या फिर वहां पर आतंकवादी हमले नहीं करते ? अवश्य करते है और अक्सर वहां हमले करने वाले अपने नापाक इरादों को अंजाम देने से पहले ही पकड़ लिए जाते है. क्योंकि वहां पर फिर भी न्याय है, कानून है. पुलिस का काम जनता की रक्षा करना है न की हमारे देश की तरह मंत्रियो से सांठ गाँठ कर अपना उल्लू सीधा करना और आम आदमी को त्रस्त करना.

देश में आज भी राज्य का मुख्यमंत्री तक अपने काफिले में साईंरन वाली गाडिया, पुलिस और डॉक्टर की टोली तक को साथ ले कर चलता है. सोचो, डॉक्टर की जरुरत अस्पातल में भर्ती मरीज को ज्यादा है या फिर मुख्यमंत्री को अपने काफिले में अपना रुतबा दिखने के लिए. हमारे राष्ट्रपति को आम आदमी से जुड़ने की बजाये सुखोई विमान में बैठने में अधिक दिलचस्पी है. चाहे इसके लिए उन्हें कुछ दिन ट्रेनिंग ही क्यों न लेनी पड़े और इसके लिए वायु सेना के डिविजन को अन्य कामो से मुक्त क्यों न किया जाए.

कहने को इंग्लैंड में अभी भी राजशाही है पर वहां राजा तो प्रजा के साथ चल रहा है. वो रेल गाडी के समय पर आ रहा है न कि रेल को उसके समय पर चलने को बाध्य किया जा रहा है. और हमारे यहाँ प्रजातंत्र जहाँ, सिर्फ कहने भर को, प्रजा का तंत्र चलता है. अब आप किसे प्रजातंत्र कहेंगे और किसे राजशाही.

शायद अभिशप्त है इस देश के नागरिक ऐसे दोहरे चरित्र वाले प्रजातंत्र से.

हम सबने ऐसा कटु अनुभव अपनी जिन्दगी में अवश्य किया होगा. इस दोहरे चरित्र वाके प्रजातंत्र पर आपकी क्या राय है ?

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