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थोड़ा हंस ले

संता को ठंड लग गई , वह कांप रहे थे।
संता के बेटे ने डॉक्टर को कॉल किया : डॉक्टर साहब , जल्दी आ जाइए।
डॉक्टर : क्या हुआ ?
संता का बेटा : पता नहीं बापू को क्या हो गया है , सुबह से वह ' वाइब्रेशन मोड ' पर चले गए हैं।
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रात के दो बजे पुलिस ने संता को रोड पर पकड़ लिया।
पुलिस : ओए , इतनी रात में कहां जा रहा है ?
संता : जी सर , दारू के नुकसान पर प्रवचन सुनने।
पुलिस : झूठ बोलता है ? इतनी रात को कौन प्रवचन देता है ?
संता : बीवी !
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संता: यार आजकल मुझे एक लड़की परेशान कर रही है। जब भी मैं किसी से फोन पर बात करना चाहता हूं, वह अचानक से बोल पड़ती है।
बंता: अच्छा, लेकिन वह कहती क्या है?
संता: प्लीज रिचार्ज योअर कार्ड।

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संता डार्लिंग क्या तुम मुझसे शादी करोगी?
लड़की तमीज से बात करो
संता बहिनजी, क्या आप मुझसे शादी करोगे?
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बंता वो लड़की बहरी लगती है. मैं कुछ कहता हूँ, वह कुछ और ही बोलती है.
संता कैसे ?
बंता मैंने कहा आई लव यू , तो वह बोली मैंने कल ही नए सेंडल ख़रीदे हैं
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एक लड़की बंता की दूकान पर जाती है और कहती है मुझे अंडरवियर दिखाओ.
बंता शरमाते हुए आज पहन कर नहीं आया.
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संता ओये, लड़की देख, कितनी सुंदर है.
बंता मुझे तो उसका नाम भी पता है .
संता क्या नाम है.
बंता में बैंक गया था, वहां यह एक काउंटर पे बैठी थी, नेम
प्लेट पे लिखा था "चालू खाता"
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इंसपेक्टर संता से फांसी से पहले, बता तेरी आखरी इच्छा क्या है ?
संता मेरे पैर ऊपर और सिर नीचे कर के फांसी दे दो!
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भिखारी ओह सुंदरी, अँधा हूँ, पाँच रुपया दे दे.
संता अपनी पत्नी से दे दे, दे दे, तुझे सुंदरी बोला है तो हर हाल में ये अँधा है.
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बंता जब मैं पैदा हुआ था तो मिलिटरी वालों ने 21 तोपें चलाईं थी.
संता कमाल है ! सब का निशाना चूक गया ?
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फ़ोन की रिंग बजी. संता फ़ोन मेरे लिए हो तो कहना में घर पे नहीं हूँ .
जीतो फ़ोन पे वो घर पे हैं.
संता मैंने मन किया था...
जीतो फ़ोन मेरे लिए था
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संता बंता से मैं अपना पर्स घर भूल आया, मेनू 1000 रुपये चाहिए.
बंता दोस्त ही दोस्त के काम आता है, ले 10 रुपये, रिक्शा कर purse le aa.
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संता जीतो से कैसी सब्जी बनाईं है, बिल्कुल गोबर जैसा स्वाद है.
जीतो, माथा पीटते हुए हे भगवन जाने इन्होने क्या-क्या खा के देखा हुआ है.
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संता घर का सारा कीमती समान छुपा के रख दो, मेरे दोस्त रहे हैं.
जीतो क्यों! आपके दोस्त चुरा लेंगे?
संता नहीं, पहचान लेंगे.
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संता बंता से उस आदमी को क्या कहोगे जो सुन नहीं सकता
बंता कुछ भी क्यूंकि वो कुछ नहीं सुन सकता ना
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संता फोन पर बात कर रहा था
बंता किस से बात कर रहे हो ?
संता बीवी से
बंता इतने प्यार से ?
संता तुम्हारी है .
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संता अपनी गर्ल फ्रेंड को किस करता है
गर्ल फ्रेंड शादी से पहले ये सब नहीं
संता अरे चिंता मत करो मैं शादी शुदा हूँ
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बंता जिंदगी को कौन ज़्यादा अच्छा बना सकती है, गर्ल फ्रेंड या बीबी
संता बीबी बस होनी किसी और की चाहिए!
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संता ने एक कार खरीदी वो भी लोन पर...जैसा होना था वो लोन की किस्त नहीं जमा कर सका और बैंक वाले आकर उसकी कार ले गए
संता अरे मुझे ऐसा पता होता तो मैं शादी के लिए भी लोन ले लेता
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बंता मुजरा देखने गया, सारी रात मुजरा देखा.
बाई ने कहा साहब हमने आप को खुश किया, अब आप हमे खुश करो.
बंता उठा और ख़ुद नाचने लगा..
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सिन्धी शायर ने अर्ज़ किया
मूर्ख था शाहजहाँ जो कर गया खर्चा इतना ताज पर कमबख्त,
हर दिन एक नई मुमताज़ जाती उस खर्चे के ब्याज पर
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भिखारी : बीबी जी आपकी पड़ोसन ने 8 रोटी दी हैं। आप भी कुछ दे दो।
महिला : ये लो गोलियां। उनको पचाने में काम आएंगी।

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एक युवती ने एक बहुत ही बूढ़े , लेकिन अमीर आदमी से शादी की। एक अखबार वाले ने उनसे पूछा , आपने अपने पति में क्या देखा ?
युवती ने कहा , एक तो इनकी इनकम। दूसरे इनके दिन कम।

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संता बंता से : यार , तुम दवाई लेते समय कैप्सूल की साइड क्यों काट देते हो ?
बंता : ताकि मैं साइड इफैक्ट से बच जाऊं।

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मरीज (डॉक्टर से)- क्या आपको यकीन है कि मुझे निमोनिया ही है? दरअसल मैंने एक मरीज के बारे में पढ़ा था कि डॉक्टर उसका निमोनिया का इलाज करते रहे और अंतत: जब वह मरा तो पता चला कि उसे टाइफाइड था। डॉक्टर (मरीज से)- चिंता मत करो मेरे साथ ऐसा नहीं होगा। अगर मैं किसी का निमोनिया का इलाज करूंगा, तो वह निमोनिया से ही मरेगा
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सत्ता के गलियारों में बैठे हुए नमूनों का एक और तमाशा

कल से ही देश की राजनीती में उबाल आया हुआ है। देश की राजनीति का विभत्स्य रंगमंच कहे जाने वाले प्रदेश यानि, उत्तर प्रदेश में कल से ही एक नए नाटक का विमोचन हो रहा है जिसके मुख्य पात्र है हज़ार करोड़ से ज्यादा समाप्ति की मालकिन, एक अनुसूचित दलित की बेटी जिसके पास आम आदमी तो क्या उसकी पार्टी के नेताओ तक का पहुंचना नामुमकिन है और जिसकी सुरक्षा में दो दर्ज़न देश के उत्कृष्ट कमांडो लगे रहते है. तो एक तरफ ये दलित की अरबपति बेटी, उसके हजारो गुंडे (इसको सरकारी तंत्र, सरकारी कर्मचारी और पार्टी के कार्यकर्ता पढ़े) और दूसरी तरफ है नपुसंक राष्ट्र की सत्ता की बागडौर सँभालने वाली कांग्रेस पार्टी. जिसकी सत्ता की रगों में आज भी उस महात्मा गाँधी का खून दौड़ता है कि अगर कोई एक गाल पर थप्पड़ मार दे तो दूसरा गाल आगे कर देना चाहिए. दरअसल एक वाक्य में कहा जाए तो ये गुंडों और नापुसंको के बीच का विवाद है. वैसे तो इन दौ कोडी के लोगो पर कुछ लिख कर अपना कीमती समय ख़राब करने का मन नहीं होता पर क्या करू इतना हल्कापन देख कर खून खौल उठता है और देश के इस अफसोसजनक हालत पर शायद आज एक आम आदमी इसी तरह अपने क्षोभ की अनुभूति कर सकता है. .

अब जरा देश के मीडिया पर भी एक नज़र. हमारा मीडिया देश के कर्मठ नौजवान और कमांडो को मरवाने की चिंता किये बिना ही मुंबई हमलो का सीधा प्रसारण दिखा कर अपनी टीआरपी बढाने में शान समझता रहा. इस घटना ने सरकार की लाशो की गिनती बढ़वाने में काफी मदद की (होश उडाने वाला विडियो नीचे के मुंबई हमले से सम्बंधित पोस्ट में अवश्य देखे). आज ये सेकुलर मीडिया ये बतलाने में संकोच कर रहा है कि ऐसा भी डा. रीता बहुगुणा जोशी ने क्या कह दिया. बलात्कार की खबर को चटखारे ले कर छापने वाला मीडिया इसके बारे में दिए गए बयान को लिखने में संकोच कर रहा है.

ऐसा सुनने में रहा है की रीता बहुगुणा ने रीता जोशी ने राज्य में बलात्कार की शिकार बनी महिलाओं को राज्य सरकार की ओर से मुआवज़ा दिए जाने पर एतराज़ जताते हुए हाल में अपने भाषण में इस बात का उल्लेख किया था कि जब किसी दलित महिला के साथ बलात्कार होता है तो पुलिस महानिदेशक बिक्रम सिंह मुरादाबाद, मथुरा और दूसरे जिलों में हेलीकॉप्टर से जाते हैं और 25 हज़ार रूपए का मुआवज़ा देते हैं जबकि उनके हेलीकॉप्टर पर सात लाख का खर्च आता है. आगे रीता ने ऐसा कहाँ बतलाते है कि "हो जाए तेरा (मायावती का) बलात्कार, हम देंगे 1 करोड" -- यही वो कथन है जिस पर बबाल हो रहा है. इसमें कोई दो मत नहीं की ये टिपण्णी सरासर गलत है, और शायद रीता ने इसके लिए माफ़ी भी मांग ली बतलाते है, लेकिन क्या ये टिपण्णी औरैया में इंजीनियर मनोज कुमार गुप्ता की उनके घर में घुस का बेरहमी से बहुजन समाज पार्टी के विधायक शेखर तिवारी द्वारा करंट लगा कर और पीट-पीटकर कथित हत्या से भी घिनौनी है. रीता ने टिपण्णी की और मायावती के लोगो ने मायावती के जन्मदिन पर हर साल आर्थिक सहयोग दिवस के नाम पर खुल कर कर रही लुट और हत्या का कोई हिसाब नहीं.

मेरे विचार से जब देश में चारा खाने वाले, हत्या, बलात्कार, आतंकवाद करने वाले लोग न केवल खुले घूम रहे है बल्कि सम्पूर्ण सुरक्षा के साथ संसंद के गलियारों में बैठे है, तो फिर इस कथन को कहने वाले को न्यायिक हिरासत में लेना कही से भी न्यायसंगत नहीं लगता. अदालत भी अपने आप में एक नमूना है. हजारो करोड़ की अपनी खुद की मूर्तियाँ जो मायावती लगवा रही है सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, उस पर रोक तक लगाने से मना कर दिया है. इससे पहले एक राज्यपाल मायावती के खिलाफ CBI जांच की इजाजत देने से भी इनकार कर चुके है.

यानि अन्य महिलाओं (चाहे वो दलित हो, नाबालिग हो या कोई भी स्त्री हो) उस राज्य में अगर उस पर कोई अत्याचार हो जाए तो सरकार सात लाख रूपये के उड़नखटोले में बैठ कर उसे पच्चीस हज़ार रूपये दे कर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लेती है. लेकिन ऐसा अगर कोई मुख्यमंत्री के बारे में सोच या बोल दे तो उसकी खैर नहीं.

उसके ऊपर मायावती ने रीता जोशी मामले पर एक संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस के सदस्यों को खुल्मखुल्ला धमकाया है और कहा है कि रीता जोशी का अपराध माफ़ करने योग्य नहीं है. उनका कहना था, "वरुण गाधी की तरह रीता को भी कुछ समय के लिए चाहे ज़मानत मिल जाए लेकिन इससे इस महिला का अपराध कम नहीं होता.देर सवेर क़ानून के तहत उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी. मैं कांग्रेस के लोगों को चेतावनी देना चाहती हूँ कि कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष के किए कृत्य को दबाने के लिए क़ानून को अपने हाथ में न लें, नहीं तो उनसे सख़्ती से निपटा जाएगा."

प्रदेश में गुंडागर्दी अपने चरम पर है, सरकारी तंत्र मुख्यमंत्री चाहे वो कोई भी हो, उसके तलुवे चाटता हुआ अपना उल्लू सीधा करने में लगा है. हम चाहे देश की प्रगति की जितनी भी बाते कर ले, जमीनी हकीक़त ये ही है की देश आज भी राजा, प्रजा और गुलाम प्रथा में ही चल रहा है. फर्क इतना है की आज राजा गुंडे, मवाली अपनी जांत और बाहुबल के कारण बनते है. पहले कहते थे यथा राजा तथा प्रजा पर आज शायद लगता है यथा प्रजा तथा राजा. तो ये प्रजा जिस तरह की है या जिस तरह की प्रजा वोट देने जाती है वैसी ही सरकार बनती है और वैसा ही राज्य होता है

आज राजनीती में जिस तरह के लोग आ गए है उनसे तो उम्मींद करना बिल्ली से दूध की रखवाली करवाने के समान ही है। आइये दुआ करे की देश की डोर कुशल और योग्य लोगो के हाथ में आये जो देश की सही दशा और दिशा का निर्धारण कर सके ताकि ये बलात्कार की सियासत बंद हो और जो पीड़ित है उन्हें जल्द से जल्द न्याय मिले.

संत कबीर के दोहे

कबीर सन्त कवि और समाज सुधारक थे। उनकी कविता का एक-एक शब्द पाखंडियों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग व स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारियों को ललकारता हुआ आया और असत्य व अन्याय की पोल खोल धज्जियाँ उडाता चला गया। कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी पलीता था। सत्य भी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशान बन चोट भी करता है और खोट भी निकालता है। आइये इस महान संत के कुछ अविस्मरणीय दोहो का आनंद ले :

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय |
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ||

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ||

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे |
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ||

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात |
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ||

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये |
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ||

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार |
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ||

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब |
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ||

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग |
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ||

जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप |
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ||

जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान |
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ||

जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश |
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ||

जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ||

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए |
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ||

ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग |
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार |
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ||

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय |
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ||

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए |
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ||

जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही |
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ||

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत |
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||

उजल कपडा पहन करी, पान सुपारी खाई |
ऐसे हरी का नाम बिन, बांधे जम कुटी नाही ||

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही |
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए |
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ||

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय |
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ||

प्रेम भावः एक चाहिए, भेष अनेक बनाये |
चाहे घर में बास कर, चाहे बन को जाए ||

फल कारण सेवा करे, करे न मन से काम |
कहे कबीर सेवक नहीं, चाहे चौगुना दाम ||

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ॥

माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय |
भागत के पीछे लगे, सन्मुख आगे सोय ||

मन दिना कछु और ही, तन साधून के संग |
कहे कबीर कारी दरी, कैसे लागे रंग ||

काया मंजन क्या करे, कपडे धोई न धोई |
उजल हुआ न छूटिये, सुख नी सोई न सोई ||

कागद केरो नाव दी, पानी केरो रंग |
कहे कबीर कैसे फिरू, पञ्च कुसंगी संग ||

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर |
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||

जाता है तो जाण दे, तेरी दशा न जाई |
केवटिया की नाव ज्यूँ, चडे मिलेंगे आई ||

कुल केरा कुल कूबरे, कुल राख्या कुल जाए |
राम नी कुल, कुल भेंट ले, सब कुल रहा समाई ||

कबीरा हरी के रूठ ते, गुरु के शरणे जाए |
कहत कबीर गुरु के रूठ ते, हरी न होत सहाय ||

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||

कबीर खडा बाजार में, सबकी मांगे खैर |
ना काहूँ से दोस्ती, ना काहूँ से बैर ||

नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय |
कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ||

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय |
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान |
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||

माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए |
हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ||

सुमिरन मन में लाइए, जैसे नाद कुरंग |
कहे कबीरा बिसर नहीं, प्राण तजे ते ही संग ||

सुमिरन सूरत लगाईं के, मुख से कछु न बोल |
बाहर का पट बंद कर, अन्दर का पट खोल ||

साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय |
ज्यों मेहंदी के पात में, लाली रखी न जाए ||

संत पुरुष की आरती, संतो की ही देय |
लखा जो चाहे अलख को, उन्ही में लाख ले देय ||

ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार |
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||

हरी संगत शीतल भया, मिटी मोह की ताप |
निश्वास सुख निधि रहा, आन के प्रकटा आप ||

कबीर मन पंछी भय, वहे ते बाहर जाए |
जो जैसी संगत करे, सो तैसा फल पाए ||

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार |
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर |
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥

कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय |
भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ||

कागा का को धन हरे, कोयल का को देय |
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||

लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट |
अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ||


तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥

उठा बगुला प्रेम का, तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला, तिन का तिन के पास॥

साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥

धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए,
माली सींचे सौ घडे, ऋतू आये फल होए

मांगन मरण सामान है, मत मांगो कोई भीख,
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख

ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि.
मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये

केंद्र सरकार के सकारात्मक निर्णय

देश को आजाद हुए आज साठ से भी ज्यादा साल हो चुके है और इन साठ सालो के सरकार के रिपोर्ट कार्ड में जमीनी तौर पर तरक्की के नाम पर इक्का दुक्का ही कार्य देखने को मिलता है. हमारे देश के तत्कालीन भाग्य निर्माताओ ने जो देश की जो खोखली बुनियाद रखी थी उसे समय की दीमक कब की चाट गई है. परिवर्तन संसार का नियम है पर हमारे देश और देशवासी इस परिवर्तन से अनभिज्ञ रहे और समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ गया.

जहाँ गाँधी जी ने आजादी के वक़्त बंटवारे की नींव रखी, वही नेहरु जी ने भारतीय राजनीति में वंशवाद की नींव रखी जिसमे तुष्टिकरण का सीमेंट लगाया, आरक्षण की मिटटी लगाईं और हिंदी, अहिन्दी भाषी दीवार खड़ी कर दी. नेहरु जी ने रूस और चीन के नक़ल करते हुए सार्वजनिक उद्योग के मॉडल का अनुसरण किया जो आज विश्व में हर जगह पूरी तरह से फ्लॉप हो चुका है.

इस बार के चुनाव परिणाम देख कर लगता है कि, जरुरत से ज्यादा अति होने के बाद, अब शायद बिहार जनता को अक्ल आ गई है लेकिन अभी उत्तर प्रदेश के लोगो में अक्ल आनी बाकी है। उत्तर प्रदेश में पिछले दो साल से कोई भी देशी या विदेशी औधोगिक घराना नहीं आया है. मुख्यमंत्री हजारो करोड़ रूपये खर्च करके अपनी प्रतिमाये लगा रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी को गिरफ्तार कर लिया जाता है, उनके ऊपर दलित उत्पीड़न की विभिन्न धाराएँ लगा दी जाती है और उनका घर जला दिया जाता है क्योंकि उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में एक दलित महिला के बलात्कार के बाद पुलिस महानिदेशक बिक्रम सिंह हेलीकॉप्टर पर औसतन सात लाख रूपये खर्च करके पीडिता को पच्चीस हज़ार रूपये देने जाते है. शायद तुगलकी राज्य जिसमे चमडे के सिक्के चलवाए गए थे वो भी इस कदर के जंगली राज से बेहतर रहा होगा. ये सब गाँधी नेहरु की गलत नीतियों के नतीजे है जिसकी वजह से सत्ता की चाबी गलत हाथो में पड़ गई और देश की राजनीती अपराधिक, जातिगत और दलगत हो कर रह गई.


हमारे यहाँ आजादी के समय से शुरू हुए लगभग सारे सरकारी उपक्रम शुरू से ही बुरी तरह घाटे में चल रहे है. घाटे में फंसे हुए और चरमराये हुए ये सरकारी उपक्रम अपने साथ साथ देश के विकास का भी बंटाधार कर रहे है. हाल ही में जब एयर इंडिया ने सरकार से पॉँच सौ करोड़ रूपये की मांग की तो वित्तीय संकट में फँसे सरकारी उपक्रम एयर इंडिया की हालत दुरुस्त करने के लिए सरकार ने सख़्त क़दम उठाने का निर्णय किया. सरकार ने कहाँ की एयर लाइन के बोर्ड में बड़ा रद्दोबदल होगा, इस क्रम में कुछ लोगों की छुट्टी भी की जायेगी और प्रबंध तंत्र में ऐसे लोगों को चुना जाएगा जो ईमानदार और प्रतिष्ठित होंगे. यानि की अब तक बेईमान और अप्रतिष्ठित लोगो को प्रतिष्ठामान बना कर सरकार जो छल कर रही थी उसे रोकने का प्रयास किया जायेगा.

चलिए देर से ही सही केंद्र सरकार को अगर ये समझ आ गया है की सरकार का काम निति निर्धारण करना है और उद्योग धंधे चलाना सरकार का काम नहीं उद्योगपतियों का काम है तो सचमुच काफी फक्र की बात है. हाल ही में सरकार ने दो अच्छे निर्णय लिए है. हाल ही में इंफ़ोसिस के सह-संस्थापक नंदन निलेकनी जिनका नाम टाइम पत्रिका की 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल है उनको सरकार ने यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी का प्रमुख बनाया गया है. भारत जैसे विशाल देश में इतने बड़े प्रोजेक्ट को अगर सफल बनाना है तो उद्योग जगत के इस तरह के लोगो के सहारे ही बनाया जा सकता है.

दूसरी सकारात्मक खबर ये है की एयर इंडिया के बोर्ड के अध्यक्ष श्री रतन टाटा को बनाया जा रहा है। रतन टाटा ने इसकी अनौपचारिक सहमती दे दी है और जल्द ही प्रधानमंत्री इस बारे में घोषणा करेंगे। यानि नेहरूजी ने जिस एयर लाइन को टाटा से लिया था आज सरकार उसे कंगाल और खस्ताहाल करके टाटा कर रही है.

सरकार के ये दोनों निर्णय एक बोझल बजट के बाद कुछ अच्छे संकेत है. लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या क्रियान्वन की है. सरकार उच्च पदों पर सही व्यक्ति आसीन कर दे जो सही निति निर्धारण और फैसले ले सके, लेकिन अन्तोगत्वा कार्य तो सरकारी अधिकारी और बाबु ही करेंगे

सरकार पहले भी श्री राजीव गाँधी के समय १९८४ में अमेरिका से डा. सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा या डा. सैम पित्रोदा को जिनके नाम पर बेल लैब अमेरिका में कई पेटेंट है, भारत लाकर C-DOT का अध्यक्ष बनाया था. डा. पित्रोदा ने देश में STD/ISD सेवा के माध्यम से उस वक़्त दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति ला दी थी और कई हज़ार रोजगार भी उत्पन्न किये थे. लेकिन फिर वी पी सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन पर राजनितिक और भ्रष्टाचार के आरोप लगे और एक हर्दयघात के बाद इन्हें पुनः अमेरिका लौटना पड़ा.

अगर नंदन निलेकनी और रतन टाटा जैसे प्रभावशाली व्यक्तियों को बिना सरकारी हस्तक्षेप के दफ्तरशाही से मुक्त रख कर अपना काम करने की इजाजत दी जाए और उन्हें खुद अपनी टीम चुनने का अवसर दिया जाए तब जा कर सरकार के इस निर्णय के कुछ सकारात्मक नतीजे मिलने की सम्भावनाये है।